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आती है बात जब बलिदान की,
सुनी अनसुनी करके नादान हम बन जाते हैं;
नादानियत की ओढ़ के चादर हम सो जाते हैं |

- संत श्री अल्पा माँ
आती है बात जब बलिदान की,
सुनी अनसुनी करके नादान हम बन जाते हैं;
नादानियत की ओढ़ के चादर हम सो जाते हैं |



- संत श्री अल्पा माँ

 
आती है बात जब बलिदान की,
सुनी अनसुनी करके नादान हम बन जाते हैं;
नादानियत की ओढ़ के चादर हम सो जाते हैं |
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