हर बार बस एक ही भूल हम किये जाते हैं |
समझाने पर तेरे भी समझ हम नहीं पाते हैं |
ना जाने कौनसा खिचाव, जिसमें ना चाह कर भी खिच हम जाते हैं |
अपने ही हाथों से बांधे हुए बंधन को,
अपने ही हाथों से तोड़ हम देते हैं |
- संत श्री अल्पा माँ
हर बार बस एक ही भूल हम किये जाते हैं |
समझाने पर तेरे भी समझ हम नहीं पाते हैं |
ना जाने कौनसा खिचाव, जिसमें ना चाह कर भी खिच हम जाते हैं |
अपने ही हाथों से बांधे हुए बंधन को,
अपने ही हाथों से तोड़ हम देते हैं |
- संत श्री अल्पा माँ