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Hymn No. 4240 | Date: 17-Aug-20012001-08-172001-08-17कैसे कहूँ, कैसे बतलाऊँ मैं, चोट कहाँ कैसे लगीSant Sri Apla Mahttps://mydivinelove.org/bhajan/default.aspx?title=kaise-kahum-kaise-batalaum-maim-chota-kaham-kaise-lagiकैसे कहूँ, कैसे बतलाऊँ मैं, चोट कहाँ कैसे लगी,
थाम के रखा था दिल तो मैंने, फिरभी दिल को चोट लग गई ।
नजरों का नजरों से मिलना और जैसे दिल का चोट खाना,
ना बच सका मैं मार से कि, ना बयाँ भी तो कर सका ।
ना कह सकता हूँ कुछ उनको तो, के आखिर वो तो है मेरे,
फरियाद करुँ तो कैसे करुँ, कि वो तो हैं पहचान मेरी ।
बहुत आये दिल में बसने को दिलने उनको ना बसाया,
जिसको बसाना था बसाया, उसीको उसने, के वक्त उसमें ना लगाया ।
हुआ वो घायल तब से कि गहरी चोट लग गई,
नज़र का काम नज़र कर गई के बदला दिल ले गई ।
कैसे कहूँ, कैसे बतलाऊँ मैं, चोट कहाँ कैसे लगी