View Hymn (Bhajan)
Hymn No. 1651 | Date: 01-Aug-19961996-08-011996-08-01कभी कुछ पाया कभी कुछ गवाया, सिलसिला अपना इससे आगे ना बढ़ पायाSant Sri Apla Mahttps://mydivinelove.org/bhajan/default.aspx?title=kabhi-kuchha-paya-kabhi-kuchha-gavaya-silasila-apana-isase-age-na-badhaकभी कुछ पाया कभी कुछ गवाया, सिलसिला अपना इससे आगे ना बढ़ पाया,
अपना जीवन तो हमने बस पाने-गवाने में ही बिताया।
बढ़ना चाहा इससे आगे कई बार मैंने, पर इससे आगे बढ़कर भी मैं बढ़ ना पाया।
एक साँस आई, एक साँस गई, खाली साँसों के संग हमने जीवन बिताया।
रूकने पर साँसों के जीवन का भी अंत आया, फिर भी में ना बदल पाया,
पाना था जो मुझे उसे मैंने ना पाया, जीवन अपना गँवाने में ही बिताया।
कभी पाकर खुश हुआ, तो कभी खोकर दुःखी हुआ, हाल अपना ना बदल पाया।
जिंदगी कि राह में चला तो बहुत पर मंज़िल तक पहुँच ना पाया।
कहूँ इसे अपनी मज़बूरी के कहु किस्मत, कहु तो क्या कहु ना ये जान पाया,
बाँध कर रखा अपनेआप को बंधनो में, बंधन अपने मैं छूड़ा ना पाया।
कभी कुछ पाया कभी कुछ गवाया, सिलसिला अपना इससे आगे ना बढ़ पाया