View Hymn (Bhajan)
Hymn No. 4300 | Date: 27-Oct-20012001-10-272001-10-27ये कैसा दौर साथी, ये कैसा दौर समझकर समझ नहीं पाते हैंSant Sri Apla Mahttps://mydivinelove.org/bhajan/default.aspx?title=ye-kaisa-daura-sathi-ye-kaisa-daura-samajakara-samaja-nahim-pate-haimये कैसा दौर साथी, ये कैसा दौर समझकर समझ नहीं पाते हैं,
ना करना चाहे फरियादें, फिर भी फरियादें उभर आती है,
कहने को कह देते हैं तुझसे कुछ भी, पर रीत ये ना अच्छी लगती है,
दिल की गहराईयों तक जब पहुँच जाते है, तब बहुत पछताते हैं,
कह नहीं पाते हैं कभी जीवन में. कुछ रोक भी नहीं पाते हैं,
ना इधर, ना उधर, दो नाँव पर पाँव रखकर चलते जाते हैं,
पर सँभल ने पर अपनी गलती का अहसास पाते है,
ना कुछ और साथ तुझसे एक जरा सा हौसला चाहते है,
पार करने को ये मजधार तेरा एक धक्का हम चाहते हैं,
लफज़ों की ये लडाई और नहीं करना चाहते हैं,
संजोगों की असर अपने प्यार पर आने देना नहीं चाहते हैं,
एक चाहत तेरी, कोई और चाहतों को नहीं चाहते हैं ।
ये कैसा दौर साथी, ये कैसा दौर समझकर समझ नहीं पाते हैं