View Hymn (Bhajan)
Hymn No. 4244 | Date: 18-Aug-20012001-08-182001-08-18किसी को तन की पीड़ा सताये, किसीको मन की पीड़ा सतायेSant Sri Apla Mahttps://mydivinelove.org/bhajan/default.aspx?title=kisi-ko-tana-ki-pidaa-sataye-kisiko-mana-ki-pidaa-satayeकिसी को तन की पीड़ा सताये, किसीको मन की पीड़ा सताये,
किसी को दर्दे दिलकी पीड़ा तो किसीको कुछ और सताये,
पर ये तो हमने देखा कि सबको कुछ ना कुछ जरुर सताये ।
कोई एक किसी दूजे को सताये, वो दूजा किसी और को सताये,
सब चाहे जीवन में कि उन्हें जीवन में कोई ना सताये,
फिरभी देखो हर कोई किसी दूसरे को सताने में मज़ा पाये ।
इन्सान की ये बात देखकर खुदा भी हैरान हो जाये,
जो खुद को ना भाये वो सबको परोसना चाहे ।
बने जब खुद तमाशा, तब सारे होश हवास उड़ जाये,
पर किसी दूसरे के तमाशे पर वो जश्न मनाये ।
किसी को तन की पीड़ा सताये, किसीको मन की पीड़ा सताये